इसके इतिहास की विस्तृत जानकारी भी दी
इसके इतिहास की विस्तृत जानकारी भी दी
खबर खास, शिमला :
हिमाचल प्रदेश विधान सभा अध्यक्ष कुलदीप सिंह पठानियां ने सदन के अन्दर सदस्यों को सम्बोधित करते हुए कहा कि आज हम सभी के लिए प्रसन्नता का विषय है कि कौंसिल चैम्बर ने 100 वर्ष पूर्ण कर लिए हैं। आज ही के दिन 100 वर्ष पूर्व 20 अगस्त, 1925 को भारत के वाइसराय लॉर्ड रीडिंग ने इस भवन का लोकार्पण किया था। यह भव्य भवन कई ऐतिहासिक घटनाओं का गवाह रहा है जो अविस्मरणीय तथा अतुलनीय है।
पठानियां ने कहा कि ऐतिहासिक काउंसिल चैम्बर, ब्रिटिश शासन के दौरान निर्मित अंतिम वास्तुशिल्पीय अजूबों में से एक है। तत्कालीन सरकार द्वारा इस चैम्बर के निर्माण का संकल्प लेने से पहले, तत्कालीन लोक निर्माण सदस्य सर क्लॉड हिल ने भवन की प्रकृति और चरित्र के बारे में विधायकों के विचार जानने के लिए असाधारण सावधानी बरती। इसके लिए उन्होने देश भर में पंद्रह विधायकों की एक समिति नियुक्त की, जिन्होने हर पहलू पर गहन विचार – विमर्श किया। नतीजतन यह भव्य भवन था जिसका निर्माण वर्ष 1925 से ₹8.5 लाख की लागत से हुआ था
उन्होंने कहा कि इसमे कोई संदेह नहीं है कि सौ साल पहले यह भवन अस्तित्व में आया था तब से यह कौंसिल चैम्बर हमारे विधायी इतिहास के निर्णायक क्षणों का साक्षी रहा है। कभी इसमें केंद्रीय विधान सभा हुआ करती थी और इसकी दीवारों के भीतर महान हस्तियों की आवाज़ गूँजती थी। इसने वायसराय की भव्यता और श्री विठ्ठलभाई पटेल व श्री मोती लाल नेहरू जैसी महान हस्तियों की गरिमा और गौरव को देखा है।
पठानियां ने कहा कि स्वतंत्रता के बाद इस भवन ने कई उद्देश्य की पूर्ति की। अलग-अलग समय पर इसमें पँजाब सरकार और हिमाचल प्रदेश सरकार के सचिवालय के महत्वपूर्ण कार्यालय स्थित रहे। कुछ समय के लिए आकाशवाणी के स्टूडियो भी इसी भवन के एक भाग में स्थित थे। 1 अक्तूबर, 1963 को हिमाचल प्रदेश विधान सभा का पहला सत्र यहाँ आयोजित होने पर इतिहास रचा गया।
उन्होने कहा कि तत्कालीन बर्मा सरकार द्वारा केंद्रीय विधान सभा को उपहार में दी गई ऐतिहासिक अध्यक्ष पीठ भी उतनी ही अमूल्य है और यह हिमाचल प्रदेश विधान सभा के अध्यक्ष पीठ के रूप में अपने महान उद्देश्य की पूर्ति कर रही है। यह हमारी संसदीय विरासत का एक जीवंत अवशेष है जो हमारे अतीत की भव्यता और हमारे लोकतांत्रिक वर्तमान के बीच एक सेतु है।
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