24 भाषाएं एक ही वटवृक्ष की अलग-अलग शाखाएं, साहित्य संपदा को देवनागरी लिपि में संरक्षित करना जरूरी, उर्दू और पंजाबी एक ही मिट्टी पंजाब से हुई अंकुरित
24 भाषाएं एक ही वटवृक्ष की अलग-अलग शाखाएं, साहित्य संपदा को देवनागरी लिपि में संरक्षित करना जरूरी, उर्दू और पंजाबी एक ही मिट्टी पंजाब से हुई अंकुरित
खबर खास, चंडीगढ़ :
हरियाणा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी और साहित्य अकादमी, नई दिल्ली के संयुक्त तत्वाधान में पंजाबी और उर्दू में लिसानी रिश्ते (परिसंवाद) कार्यक्रम का आयोजन पंचकूला में किया गया। इस कार्यक्रम में डॉ कुलदीप चन्द अग्निहोत्री ने बतौर मुख्य अतिथि शिरकत की।
उन्होंने कहा कि जो भी भारतीय भाषाएं हैं, उनका मूल उत्स एक होने के कारण उनमें समानताएं हैं। भाषा दूसरी भाषा के शब्दों को आत्मसात करती रहती हैं। हिन्दुस्तान व यूरोप की भाषाओं में समानता है तो इन सभ्यताओं का मूत उत्स भी एक ही रहा होगा। बहुत बड़ा सहित्य अरबी, फारसी लिपि में लिखा गया है। इस साहित्य संपदा को देवनागरी लिपि में संरक्षित करना जरूरी है।
कार्यक्रम का उद्घाटन संबोधन में केंद्रीय साहित्य अकादमी के अध्यक्ष डॉ माधव कौशिक ने कहा कि उर्दू और पंजाबी एक ही मिट्टी पंजाब से अंकुरित हुई हैं। अतः दोनों की उर्जा का मूल स्रोत्र एक ही है। हमारी 24 भाषाएं एक ही वटवृक्ष की अलग-अलग शाखाएं हैं। इंसाईक्लोपीडिया ब्रिटेनिका के संपादकीय में 2000 शब्दों के योगदान के लिए भारतीयों का आभार व्यक्त किया गया है। लिथवानियां की भाषा संस्कृत की मूल शब्द सम्पदा से भरपूर है। कार्यक्रम के आरंभ में केंद्रीय साहित्य अकादमी की सह संपादक डॉ संदीप कौर द्वारा कार्यक्रम की रूपरेखा प्रस्तुत की गई।
डॉ. भूपिन्दर अजीज परिहार ने बीज व्यक्तव्य में पंजाबी और उर्दू लिसानी रिश्ते के बारे में अपने विचार भी तफ्सील से रखे और उन्होंने उर्दू के मशहूर शायर कृष्ण अदीब पर विशेष वक्तव्य भी प्रस्तुत कर उनकी यादें सांझा की।इस सत्र की अध्यक्षता करते हुए सुप्रसिद्ध पत्रकार डॉ निरुपमा दत्त ने कृष्ण अदीब के योगदान को रेखांकित किया ।
इस कार्यक्रम में उर्दू व पंजाबी का लिसानी रिश्ता विषय पर प्रख्यात विद्वान डॉ. के.के. ऋषि, डॉ. मुहम्मद रफी, डॉ. भूपेन्द्र अजीज परिहार, मैं अपने शोध पर आलेख प्रस्तुत किए। इस सत्र की अध्यक्षता चंडीगढ़ साहित्य अकादमी के अध्यक्ष वरिष्ठ साहित्यकार डॉ मनमोहन सिंह ने की। डॉ मनमोहन सिंह ने पंजाबी और उर्दू की भाषागत समानताओं एवं विषमताओं पर व्यापक रूप से चर्चा की। यह अनूठा कार्यक्रम केन्द्रीय साहित्य अकादमी, नई दिल्ली के सौजन्य से आयोजित किया गया। श्री मनजीत सिंह, सदस्य सचिव हरियाणा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी,इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि के रूप में मौजूद रहे।
डॉ. चन्द्र त्रिखा, निदेशक, उर्दू प्रकोष्ठ, संस्कृत ने कार्यक्रम में शिरकत करने वाले विद्वानों श्रोतागणों का आभार व्यक्त किया। इस अवसर पर डॉ. सी.डी. कौशल, निदेशक संस्कृत प्रकोष्ठ, डॉ. जितेन्द्र पाल परवाज, श्री एस.ए. हन्नान, डॉ. विजेन्द्र , डॉ प्रतिभा मनीषा नांदल मुकेश लता प्रदीप वशिष्ठ सतीश अवस्थी संतोष गर्ग अश्वनी शांडिल्य सहित अनेक लेखक उपस्थित रहे। कार्यक्रम में प्रख्यात उर्दू शायर कृष्ण अदीब पर भी एक सत्र का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का सफल संचालन डॉक्टर जितेंद्र परवाज द्वारा किया गया।
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