* जहां की सफाई करती है एक नन्हीं 'आभी' चिड़िया
* इस झील की खूबसूरती बढ़ाता है झील के साथ बना देवी बूढ़ी नागिन का प्राकृतिक
शैली का मंदिर
* बूढ़ी नागिन हिमाचल के सभी नाग देवताओं जैसे शेषनाग, कमरूनाग, घुंडानाग,
माहूनाग आदि की माता है और मंदिर 60 नाग देवताओं और राज्य के अन्य नाग
देवताओं की मां बूढ़ी नागिन को समर्पित है
आकिल खान
खबर खास, कुल्लू :
वैसे तो कई झीलों का जिक्र आपने सुना ही होगा लेकिन जिस झील की हम बात कर रहे हैं वह हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले की तीर्थन घाटी में स्थित है। इसकी खास बात यह है कि इस झील का पानी एकदम साफ है और इसके पानी में जरा भी कचरा दिखाई नहीं देगा। क्योंकि ऐसा माना जाता है कि यहां स्थित एक नन्हा परिंदा इसकी सफाई करता है। बंजार घाटी में स्थित सरयोलसर झील देश और विदेश के सैलानियों को अपनी खूबसूरती को लेकर अपनी ओर आकर्षित करती है। इसके साथ ही बना बूढ़ी नागिन का प्राकृतिक शैली का मंदिर इस झील की सुंदरता में चार चांद लगाता है।
बंजार के जलोड़ी दर्रे से पांच किलोमीटर दूरी पर स्थित यह झील यहां का एक पर्यटक स्थल है। समुद्रतल से लगभग 10,500 फीट की ऊंचाई पर मौजूद सरयोलसर झील एक किलोमीटर की परिधि में फैली हुई है। इसके आसपास के कुदरती नजारे बरबस अपनी ओर खींचते हैं।
चारों ओर से ओक के पेड़ों से घिरी झील का पानी इस कदर साफ है कि उसमें आपको एक तिनका भी नजर नहीं आएगा। इसका कारण एक नन्हीं चिड़िया है। इस छोटी सी चिड़िया का नाम आभी है जो झील में एक भी तिनका नहीं गिरने देती और जैसे ही कोई तिनका गिरता है तो यह झट से उसे निकाल कर झील से बाहर ले जाती है। माना जाता है कि यह आभी चिड़िया सरयोलसर में ही पाई जाती है और यह दिखाई भी नहीं देती। स्थानीय निवासियों का दावा है कि इस झील की सफाई का जिम्मा सदियों से आभी चिड़िया ने संभाल रखा है जो इसी इलाके में ही होती है।
झील का पानी सूर्यादय और सूर्यास्त के दौरान सुनहरी हो जाता है जिसे शब्दों में बयां करना कठिन है। इस झील की एक और खासियत है कि यह अपना रंग जब बदलती है तो और भी सुंदर दिखती है। आसमान में काले बादल जैसे ही छाते हैं, इसका रंग हलका काला हो जाता है जबकि साफ आसमान में यह शीशे की तरह साफ और चमकदार दिखती है। सर्दियों में भारी बर्फबारी में यह झील जम जाती है।
इस झील की धार्मिक महत्वता भी है। इस झील के निकट स्थानीय देवी बूढ़ी नागिन को समर्पित एक मंदिर हैं और माना जाता है कि इस झील में उसी बूढ़ी नागिन का वास है। उन्हें लोग इस क्षेत्र का सरंक्षक मानते हैं। यहां हर साल गाय के पहले घी को चढ़ाया जाता है जोकि कई क्विंटर की मात्रा में होता है।
मान्यता है कि इस झील में जो भी जाता है, लौटकर वापस नहीं आता। मान्यता है कि बूढ़ी नागिन हिमाचल के सभी नाग देवताओं जैसे शेषनाग, कमरूनाग, घुंडानाग, माहूनाग आदि की माता है तथा वह झील के तल पर स्थित अपने स्वर्ण महल में रहती है। मंदिर 60 नाग देवताओं शेषनाग, कमरूनाग, महूनाग, घुंडानाग और राज्य के अन्य नाग देवताओं की मां बूढ़ी नागिन को समर्पित है।
इस झील के भीतर आम लोगों का जाना प्रतिबंधित है। यहां देव कार्रवाई के दौरान देवता और उनके कुछ हरियान झील मं प्रवेश करते हैं और पवित्र स्नान करते हैं।
महाभारत काल से जुड़ी है यह जगह!
मान्यता है कि महाभारत काल के दौरान पांड़वों ने यहां पर काफी समय व्यतीत किया था। उन्होंने यहां चावल की खेती की थी और यह खेत आज भी नजर आते हैं।
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