कहा, विरोध प्रदर्शन करना छात्रों का मौलिक अधिकार, इसे किसी भी कीमत पर रोका नहीं जा सकता बोले, यह फैसला मोदी सरकार की तानाशाही जैसा है, यूनिवर्सिटी प्रशासन केंद्र के आदेश पर काम कर रहा है
कहा, विरोध प्रदर्शन करना छात्रों का मौलिक अधिकार, इसे किसी भी कीमत पर रोका नहीं जा सकता बोले, यह फैसला मोदी सरकार की तानाशाही जैसा है, यूनिवर्सिटी प्रशासन केंद्र के आदेश पर काम कर रहा है
खबर खास, चंडीगढ़ :
पंजाब यूनिवर्सिटी द्वारा यूनिवर्सिटी कैंपस में धरना प्रदर्शन न करने के लिए छात्रों से एफिडेविट मांगने के फैसले की आम आदमी पार्टी ने कड़ी शब्दों में निंदा की है। आप सांसद मीत हेयर ने कहा कि यह फैसला बेहद अलोकतांत्रिक और तानाशाही है।
मीट हेर ने कहा कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है और ऐसे देश के एक सरकारी यूनिवर्सिटी में इस तरह का तानाशाही फैसला बेहद गैर-जिम्मेदार और लोकतंत्र के लिए अपमानजनक है। उन्होंने कहा कि यूनिवर्सिटी में छात्रों को अगर कोई दिक्कत होगी तो वह कहां विरोध करेंगे। सभी यूनिवर्सिटी में छात्र बेहतर पढ़ाई और सुविधा के लिए यूनिवर्सिटी प्रशासन के खिलाफ धरना करते हैं और उससे छात्रों को फायदा होता है।
उन्होंने कहा कि छात्रों ने कैंपस में धरना प्रदर्शन कर बहुत सारे बड़े फैसले करवाए। पहले लाइब्रेरी पूरी रात नहीं खुलती लेकिन जब छात्रों ने उसके खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया तो लाइब्रेरी 24×7 खुलने लगी। इसी तरह छात्रों ने विरोध प्रदर्शन बढ़ी हुए ट्यूशन फीस कम करवाया या फीस बढ़ाने ही नहीं दिया। इसलिए यह फैसला किसी स्वीकार योग्य नहीं है और आम आदमी पार्टी इसकी कड़े शब्दों में निंदा करती है।
मीत हेयर ने कहा कि पिछले कुछ समय से यूनिवर्सिटी प्रशासन लगातार इस तरह के तानाशाही फैसले ले रहा है जो बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। आप सांसद ने इसको लेकर केन्द्र सरकार को भी घेरा और कहा कि जिस तरह केंद्र की भाजपा सरकार हमेशा तानाशाही तरीके से काम करती है, यह फैसला भी उसी तरह का है। इससे स्पष्ट होता है कि यूनिवर्सिटी प्रशासन ने केंद्र के आदेश पर ऐसा किया है। शिक्षण संस्थाओं का राजनीतिकरण बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है और इससे शिक्षा व्यवस्था को भारी नुकसान पहुंचेगा।
उन्होंने कहा कि अभिव्यक्ति की आजादी और शांतिपूर्वक विरोध प्रदर्शन का अधिकार मौलिक अधिकार के अंतर्गत आता है। इसे किसी भी कीमत पर रोका नहीं जा सकता। यह देश के लोकतंत्र और संविधान दोनों के खिलाफ है। इसलिए यूनिवर्सिटी को यह फैसला तुरंत वापस लेना चाहिए।
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