विशेष आर्टिकल
विशेष आर्टिकल
श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी की 350वीं शहादत शताब्दी को समर्पित भाई जैता जी के अहसास के साथ ‘गुरु शीश मार्ग यात्रा’ के आरंभ होने के अवसर पर एकत्र हुई संगतों के चरणों में “वाहेगुरु जी का खालसा, वाहेगुरु जी की फतेह।”
आज मैं आप सबके सामने सिख इतिहास के एक ऐसे महान योद्धा और अमर शहीद की गौरवमई जीवनी प्रस्तुत करने जा रहा हूँ, जिनका नाम कुर्बानी, बहादुरी और अडिग विश्वास का प्रतीक है। यह महान वीर और कोई नहीं बल्कि ‘रंघ्ररेटे गुरु के बेटे’ की उपाधि से विभूषित भाई जैता जी अर्थात बाबा जीवन सिंह जी हैं।
भाई जैता जी (बाद में बाबा जीवन सिंह जी के नाम से जाने गये) का जन्म 13 दिसंबर 1661 ईस्वी में पटना, बिहार में पिता भाई सदा नंद जी और माता प्रेमो जी के घर हुआ। वे रंघरेटा (मज़हबी) परिवार से संबंधित थे, जिन्हें बाद में गुरु गोबिंद सिंह जी ने “रंघरेटे गुरु के बेटे” कहकर सम्मानित किया। बचपन में ही उन्होंने शस्त्र-विद्या, घुड़सवारी और कीर्तन की शिक्षा प्राप्त की।
सिख इतिहास में उनका सबसे महान कार्य दिल्ली के चांदनी चौक से नौवें पातशाह श्री गुरु तेग बहादुर जी का शीश उठा कर श्री आनंदपुर साहिब तक सुरक्षित पहुंचाना है। 11 नवंबर, 1675 ईस्वी को गुरु तेग बहादुर जी की शहादत हुयी। भाई जैता जी, भाई उदा जी और भाई नानू जी ने अपनी जान की परवाह किए बिना मुग़ल हुकूमत से गुरु जी का शीश बचाकर साहसिक कार्य किया।
वह 300 किलोमीटर से अधिक का रास्ता जंगलों और खतरनाक रास्तों के द्वारा तय करके गुरू जी का शीश श्री आनंदपुर साहिब लेकर पहुँचे, जहाँ उन्होंने छोटे साहिबज़ादे (गोबिंद राय जी) को शीश सौंपा, जिस रास्ते भाई जैता जी श्री आंनदपुर साहिब पहुँचे, उन पलों का एहसास करने के लिए केंद्रीय श्री गुरु सिंह सभा, अकाल पुरुष की फ़ौज, ज्ञान प्रगास ट्रस्ट, पंथक तालमेल संगठन द्वारा गुरू शीश मार्ग यात्रा का कीमती कार्य किया जा रहा है, जिसके लिए हम सभी एकत्र हुए हैं।
शीश लेकर आने पर गुरू गोबिन्द सिंह जी ने भाई जैता जी को गले लगाया और कहा ‘‘रंघरेटे गुरू के बेटे’। (रंघरेटे गुरू के पुत्र हैं)।
1699 ईस्वी में खालसा पंथ की स्थापना के समय भाई जैता जी ने अमृत छका और उनका नाम बाबा जीवन सिंह जी रखा गया। वह गुरू गोबिन्द सिंह जी के महान योद्धा बने और रणजीत नगाड़ा बजाने वाले पहले ‘नगारची’ भी थे। उन्होंने साहिबज़ादों को शस्त्र विद्या का प्रशिक्षण भी दिया। उन्होंने गोबिन्द सिंह जी की बहुत सी जंगों में हिस्सा लिया, जैसे कि भंगानी का युद्ध, नदोण का युद्ध, श्री आनंदपुर साहिब की लड़ाईयां। सरसा नदी का युद्ध, चमकौर साहिब की गढ़ी के यु़द्ध में उन्होंने मुग़लों का डट कर मुकाबला किया और आखिरी साँस तक लड़ते हुए 22 दिसंबर, 1704 ईस्वी को शहादत प्राप्त की। (ऐतिहासिक तिथियों में विभिन्नता हो सकती है)।
भाई जैता जी का जीवन हमें अटूट विश्वास, दिलेरी और सेवा की शिक्षा देता है। उन्होंने बताया कि जात-पात से ऊपर उठ कर कोई भी व्यक्ति गुरू के प्रति सच्ची श्रद्धा और बलिदान के साथ सिख कौम के इतिहास में अमर हो सकता है। वह सचमुच ‘रंघरेटे गुरू के बेटे’ के खित़ाब के हकदार थे। भाई जैता जी की अनमोल सेवा के कारण आज बहुत सी संस्थाओं ने भाई जैता जी के नाम के तहत महान कार्य करके भाई जैता जी को आज भी हमारे दिलों में जीवित रखा है। इन संस्थाओं में एक संस्था का मैं विशेष तौर पर जिक्र करना चाहता हूँ वह संस्था है भाई जैता जी फाउंडेशन।
भाई जैता जी फाऊंडेशन के कर्ता-धर्ता स. हरपाल सिंह शिकागो और पी. जी. आई के पूर्व निदेशक स. बी. एन. एस. वालिया के प्रयासों स्वरूप पंजाब से गरीब परन्तु पढ़ाई में शीर्ष नंबर लेने वाले सैंकड़ों बच्चों की मदद की जाती है। सभी धर्मों के साथ जुड़े इन होनहार लड़कों/लड़कियों को पहले 11वीं और 12वीं कक्षाओं में दाखि़ला दिला कर योग्य अध्यापकों और माहिरों के द्वारा प्रतियोगी परीक्षाओं में बढ़िया नतीजों के लिए प्रेरित किया जाता है और फिर आईआईटी, नीट, आईआईएस ईआर, इंजीनियरिंग और मैडीकल डैंटल और नरसिंग समेत अन्य चोटी के पाठ्यक्रमों में दाखि़ला दिलाया जाता है। भाई जैता जी फाऊंडेशन का मुख्य मंतव्य पंजाब के ग्रामीण क्षेत्रों में गरीब माता-पिता के होनहार और काबिल बच्चों को बढ़िया रोजगारोन्मुख प्रशिक्षण में मदद करके समाज का कल्याण करना है। इस तरह के प्रयास हमें प्रत्येक के भले की कामना के अंतर्गत हर जरूरतमंद की मदद का संदेश देते हैं। पंजाब सरकार द्वारा भी भाई जैता जी की याद में भाई जैता जी अजायब घर श्री आनंदपुर साहिब में संगतों को समर्पित किया गया है।
अंत में हम कह सकते हैं कि भाई जैता जी (बाबा जीवन सिंह जी) का जीवन सिर्फ एक ऐतिहासिक कथा नहीं, बल्कि मानवता और निष्काम सेवा के लिए एक प्रेरणा स्रोत है। उनका बलिदान हमें सिखाता है कि विश्वास की ताकत किसी भी तानाशाही या कठिनाई से कहीं बड़ी होती है। आओ, हम सभी उनके जीवन से शिक्षा लेकर धर्म और सत्य के लिए सदैव तत्पर रहें और भाई जैता जी फाउंडेशन के कार्यों से प्रेरित होकर ज़रूरतमंदों की मदद करते रहें।
मैं आपका सभी का धन्यवाद करता हूँ । वाहेगुरू जी का खालसा, वाहेगुरू जी की फतेह।
कुलतार सिंह संधवां (स्पीकर पंजाब विधान सभा)।
Like
Dislike
Love
Angry
Sad
Funny
Wow
Comments 0