पूछा-मंगलवार तक बताएं क्या कर रहे थे, आधार को वैध दस्तावेज माना
पूछा-मंगलवार तक बताएं क्या कर रहे थे, आधार को वैध दस्तावेज माना
खबर खास, नई दिल्ली :
सुप्रीम कोर्ट में बिहार में चल रही स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन यानी सर पर तीसरे दिन भी सुनवाई हुई। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच में ये सुनवाई चली।
SIR को लेकर सर्वोच्च न्यायालय ने आदेश दिए कि जिन 65 लाख मतदाताओं का नाम ड्राफ्ट लिस्ट में नहीं है। उनका नाम 48 घंटे के भीतर जिला निर्वाचन अधिकारी के वेबसाइट पर शेयर किया जाएगा। उनका नाम क्यों काटा गया इसकी वजह भी बताई जाए। इतना ही नहीं यह भी आदेश दिया गया कि यह लिस्ट सभी संबंधित बीएलओ के ऑफिस के बाहर, पंचायत भवन और बीडीओ के ऑफिस के बाहर लगाई जाएगी। इस बात की सूचना सभी प्रमुख समाचार पत्रों, टीवी, रेडियो के द्वारा दिया जाएगा। अदालत ने यह भी आदेश दिया कि जिनका नाम लिस्ट में नहीं है उनके पहचान पत्र के रूप में आधार कार्ड को स्वीकार करें।
सुनवाई के दौरान जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि, 'मंगलवार तक चुनाव आयोग यह बताए कि वह पारदर्शिता के लिए क्या कदम उठाने जा रहा है।' इसके लिए सुप्रीम कोर्ट ने तीन दिन का वक्त चुनाव आयोग को दिया है। अदालत ने स्पष्ट किया कि 'जिन लोगों ने फॉर्म जमा किए हैं, वे फिलहाल मतदाता सूची में शामिल हैं।'
जस्टिस सूर्यकांत ने वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी से कहा, 'चूंकि यह कार्रवाई नागरिक के मताधिकार से वंचित करने जैसे गंभीर परिणाम ला सकती है, इसलिए निष्पक्ष प्रक्रिया जरूरी है।'
इस दौरान जस्टिस बागची ने सवाल उठाया कि 'जब सभी नाम बोर्ड पर चिपकाए जा सकते हैं, तो वेबसाइट पर क्यों नहीं डाले जा सकते।'
हालांकि अधिवक्ता द्विवेदी ने दलील देते हुए कहा कि एक पुराने फैसले में मतदाता सूची को पूरी तरह खोज योग्य बनाने पर गोपनीयता संबंधी आपत्ति जताई गई थी। इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि खोज योग्य रूप में जानकारी देना ठीक है। उन्होंने बताया कि 'बूथ लेवल ऑफिसर के मोबाइल नंबर वेबसाइट पर डाले जाएंगे, जिसे जस्टिस सूर्यकांत ने अच्छा कदम माना।
सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान मृत, प्रवास कर चुके और डुप्लीकेट मतदाताओं के नाम सार्वजनिक करने पर अहम सवाल उठाए। जस्टिस सूर्यकांत ने चुनाव आयोग से पूछा, 'अगर 22 लाख लोगों को मृत पाया गया है, तो उनके नाम ब्लॉक और सब-डिवीजन स्तर पर क्यों न बताए जाएं। इस पर आयोग की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने कहा कि सिर्फ बूथ लेवल ऑफिसर ही नहीं, बल्कि बूथ लेवल एजेंट भी इस प्रक्रिया में शामिल हैं।
जस्टिस बागची ने सुझाव दिया कि मृत, प्रवासी या डुप्लीकेट मतदाताओं के नाम वेबसाइट पर क्यों नहीं डाले जाते। वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा कि 'राज्य सरकार की वेबसाइट पर यह संभव नहीं है। इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि राज्य चुनाव आयोग की वेबसाइट उपलब्ध है।'
युवाओं को बाहर रखने के इरादा, बोले याचिकाकर्ता के वकील
सुनवाई की शुरुआत चुनाव आयोग के 1 जनवरी 2003 को आधार मानकर मतदाता सूची संशोधन की प्रक्रिया को चुनौती देने वाली याचिका से हुई। याचिकाकर्ताओं की ओर से वकील निजाम पाशा ने दलील दी कि किसी भी व्यक्ति का नाम मतदाता सूची में शामिल करने की प्रक्रिया एक जैसी होती है, चाहे वह इंटेंसिव (गहन) रिवीजन हो या समरी (छोटे रूप में) रिवीजन।
उन्होंने कहा, 'अगर किसी के पास 2025 में जारी एपिक कार्ड है, तो वह उसी प्रक्रिया से गुजर चुका है। 01.01.2003 को आधार तिथि बनाने का कोई संवैधानिक औचित्य नहीं है।' पाशा ने आरोप लगाया कि इस नोटिस का आधार गलत है और इससे राज्य के युवाओं को अतिरिक्त दस्तावेज की प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ रहा है। इससे युवा मतदाताओं को बाहर रखने और एंटी-इन्कंबेंसी वोट को कम करने का इरादा झलकता है।'
'अभी तक लगभग 65 लाख मतदाता सूची से बाहर रह गए हैं और जब फॉर्म की जांच होगी तो यह साफ होगा कि इसमें युवाओं की संख्या ज्यादा है।'
Like
Dislike
Love
Angry
Sad
Funny
Wow
Comments 0