पराली जलाने के तीन मामलों में एफआईआर, जुर्माना भी लगाया कई जिलों में ‘पराली प्रोटेक्शन फोर्स’ करेगी खेतों की निगरानी
पराली जलाने के तीन मामलों में एफआईआर, जुर्माना भी लगाया कई जिलों में ‘पराली प्रोटेक्शन फोर्स’ करेगी खेतों की निगरानी
खबर खास, चंडीगढ़ :
हरियाणा सरकार ने धान की कटाई के पीक सीजन से पहले ही पराली जलाने की रोकथाम के लिए अपनी मुहिम तेज कर दी है। मुख्य सचिव अनुराग रस्तोगी की अध्यक्षता में आज यहां फसल अवशेष प्रबंधन (सीआरएम) हेतु राज्य कार्ययोजना के क्रियान्वयन की समीक्षा हेतु उच्च स्तरीय बैठक हुई।
मुख्य सचिव ने अधिकारियों को कार्ययोजना का 100 फीसदी अनुपालन सुनिश्चित करने के निर्देश देते हुए स्पष्ट किया कि पराली जलाने के प्रति सरकार की 'शून्य सहिष्णुता नीति' है। उन्होंने कहा कि वायु गुणवत्ता की रक्षा हरियाणा ही नहीं बल्कि पूरे राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) के लिए अनिवार्य है।
कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के अधिकारियों ने बताया कि इस सीजन में अब तक फतेहाबाद, जींद और कुरुक्षेत्र जिलों से पराली जलाने के तीन मामले सामने आए हैं। सभी मामलों में एफआईआर दर्ज की गई है और संबंधित किसानों के भू-अभिलेखों में रेड एंट्री की गई है। इसके अलावा, पर्यावरण क्षतिपूर्ति (ईसी) जुर्माना भी लगाया गया है। विभाग ने चेतावनी दी है कि भविष्य में ऐसे किसी भी मामले में सख्त दंडात्मक कार्रवाई की जाएगी।
कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के प्रधान सचिव पंकज अग्रवाल ने बताया कि प्रदेश में 39.33 लाख एकड़ धान क्षेत्र है और 5.65 लाख किसानों ने पराली प्रबंधन हेतु पंजीकरण कराया है। पंजीकरण करवाने वालों में शीर्ष पांच जिले–करनाल (4.69 लाख एकड़), कैथल (4.34 लाख एकड़), सिरसा (3.70 लाख एकड़), फतेहाबाद (3.61 लाख एकड़) और जींद (3.56 लाख एकड़) हैं।
गौरतलब है कि अकेले इस वर्ष, 471.96 करोड़ रुपये के प्रोत्साहन स्वीकृत किए गए हैं। इससे किसानों को स्थायी अवशेष प्रबंधन पद्धतियों को अपनाने के लिए प्रति एकड़ 1,200 रुपये प्रदान किए जा रहे हैं।
मुख्य सचिव ने अधिकारियों को निर्देश दिए कि सभी गांवों में हर खेत का मानचित्रण किया जाए ताकि पराली प्रबंधन के विशिष्ट तरीके—चाहे वह फसल विविधीकरण हो, स्थानीय स्तर पर समावेशन हो, चारे के रूप में बाहरी उपयोग हो या उद्योगों को आपूर्ति हो—उचित रूप से निर्धारित और कार्यान्वित किए जा सकें।
किसानों को सहायता देने की सरकार की प्रतिबद्धता दोहराते हुए, श्री रस्तोगी ने कहा कि हरियाणा न केवल फसल अवशेष प्रबंधन हेतु मशीनों की खरीद पर सब्सिडी दे रहा है, बल्कि कस्टम हायरिंग सेंटर (सीएचसी) के माध्यम से छोटे और सीमांत किसानों को उपलब्ध भी करा रहा है।
मुख्य सचिव ने किसानों को बायोमास संयंत्रों, ब्रिकेटिंग यूनिट्स जैसे उद्योगों और हरियाणा विद्युत उत्पादन निगम से जोड़कर एक मजबूत स्थानीय आपूर्ति श्रृंखला बनाने के महत्व पर बल दिया। सुचारू लेनदेन सुनिश्चित करने के लिए किसानों को औद्योगिक खरीदारों से सीधे जोड़ने के लिए ऑनलाइन प्लेटफॉर्म का उपयोग भी किया जा रहा है।
मुख्य सचिव ने सभी उपायुक्तों को निर्देश दिए कि वे अपने-अपने जिलों में तैयारियों की व्यक्तिगत रूप से निगरानी करें और कटाई के पीक सीजन से पहले सभी निवारक उपाय पूरी तरह लागू करें।
बैठक में कृषि विभाग के पोर्टल और मेरी फसल मेरा ब्यौरा प्रणाली के कामकाज की भी समीक्षा की गई, जो पंजीकरण, मशीनों की बुकिंग, प्रोत्साहन राशि के वितरण और रीयल टाइम डेटा रिपोर्टिंग में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
बेहतर पहुँच सुनिश्चित करने के लिए, नोडल अधिकारियों को किसानों के समूह सौंपे गए हैं। इनमें से प्रत्येक अधिकारी की रेड और येलो ज़ोन में अधिकतम 50 किसानों और ग्रीन ज़ोन में 100 किसानों की ज़िम्मेदारी है। इस संरचना से सघन निगरानी, समय पर सलाह और प्रभावी मार्गदर्शन मिलता है। ज़िला-स्तरीय प्रगति पर नज़र रखने और किसानों की समस्याओं को प्राथमिकता के आधार पर हल करने के लिए एक समर्पित परियोजना निगरानी इकाई (पीएमयू) भी स्थापित की गई है।
कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के निदेशक राजनारायण कौशिक ने बताया कि कई ज़िलों में एक बहु-विभागीय 'पराली प्रोटेक्शन फोर्स' का गठन किया गया है। इस टास्क फोर्स में पुलिसकर्मी, कृषि अधिकारी और प्रशासनिक अधिकारी शामिल हैं, जो खेतों की निगरानी करेंगे और पराली जलाने से रोकेंगे। उन्होंने बताया कि कुछ किसान उपग्रह की निगरानी से बचने के लिए देर रात पराली जलाने की कोशिश करते हैं, इसलिए शाम की गश्त पर खास ध्यान दिया गया है। सोशल मीडिया सहित अन्य माध्यमों से शिकायतों को प्राप्त करने और उनका समाधान करने के लिए राज्य और जिला स्तर पर नियंत्रण कक्ष भी स्थापित किए गए हैं।
बुनियादी ढांचे को मजबूत करने के लिए, राज्य ने पराली की गांठों के भंडारण के लिए प्रमुख जिलों में 249 एकड़ पंचायती भूमि की पहचान की है। ये डिपो आग के खतरों से होने वाले नुकसान को रोकेंगे और औद्योगिक उपयोग के लिए निर्बाध आपूर्ति सुनिश्चित करेंगे।
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