एक श्लोक में वृदावस्था का सार : वृद्धावस्था को लेकर एक श्लोक: यावद् वित्त-उप-अर्जन-सक्त: तावत् निज-परिवार: रक्तः पश्चात् धावति जर्जर-देहे वार्ताम् पृच्छति क: अपि न गेहे| अथार्त- जब तक धन-संपत्ति अर्जित करने में समर्थ हो तब तक उसका परिवार उसमें अनुरक्ति रखता है। बाद में वह जर्जर हो चुके शरीर के साथ इधर-उधर भटकता है और घर में कोई उससे हालचाल भी नहीं पूछता।
संस्था का उद्देश्य एकांगी वरिष्ठ नागरिकों को खुशनुमा और शांत पारिवारिक जीवन उपलब्ध कराना
28 राज्य, 409 शहर और 7459 सदस्य संस्था से हैं जुड़े
अनुराधा शर्मा
खबर खास, चंडीगढ़ :
आजकल जिस से भी बात करो, वह हमेशा समय का हवाला देते हुए बोलता है, समय नहीं है, मरने की भी फुर्सत नहीं है, टाईम नहीं मिला...वगैहरा..ऐसा नहीं है कि किसी के पास समय नहीं है, बावजूद इसके यह हील हवाला देकर मौका टाल दिया जाता है। लेकिन जीवन में कभी ऐसा भी पल आता है कि आपको किसी की जरूरत हो लेकिन उसके पास टाइम ही नहीं। यही भागदौड़ भरी जिंदगी का कड़वा सच है। इस कड़वे सच से सबसे अधिक दो-चार होते हैं वृद्धावस्था की पड़ाव में पड़े वह लोग जिन्हें अपनी जरूरतों के लिए किसी न किसी पर निर्भर होना पड़ा है। इसे समझते हुए पीएनबी बैंक से सेवानिवृत्त हुए दो लोगों ने आठ साल पहले एक ऐसी पहल की जिसने कई लोगों के जीवन में बड़े बदलाव ला दिए। बैंक से सेवानिवृत्त हुए अनिल कुमार खोंसला और प्रबोध चंद जैन ने आठ साल पहले एक ऐसा बैंक शुरू किया जिसमें पैसे जमा नहीं होते बल्कि हमारा समय जमा होता है। चौंक गए ना! इसका नाम है 'टाइम बैंक आफ इंडिया ट्रस्ट'।
इस 'समय बैंक' की खासियत यह है कि इसमें समय जमा किया जाता है और इसे तब निकाला जा सकता है जब आपको इसकी जरूरत है। अब तक इस बैंक में 10,219 घंटे जमा हो चुके हैं और तकरीबन दस हजार घंटे की निकासी भी हुई है। इस बैंक के इस समय देश भर के 28 राज्यों और 409 शहरों में 7,459 सदस्य हैं और कमाल की बात तो यह है कि इसमें समय जमा करने वालों की उम्र 60 से 80 साल के दरमियान है। इस बैंक में लोग अपना टाइम जमा करते हैं और
बीमारी, हादसे या किसी ऐसी ही जरूरत के समय उसे वापिस भी ले सकते हैं। अब तक यहां से 1254 मदद का निवेदन आ चुका है। इनकी वेबसाइट में विजिट कर उन लोगों के वीडियो भी देखे जा सकते हैं जिन्होंने समय-समय पर इस बैंक की सेवाएं ली।
ऐसे हुई टाइम बैंक की भारत में शुरूआत
इस पूरे सफर को लेकर फाउंडर चेयरमैन प्रबोध चंद्र जैन ने बातचीत में बताया कि इसका आइडिया उन्हें 2018 में तब आया जब वह वाट्सएप पर एक स्टोरी पढ़ रहे थे। उस स्टोरी को एक इंडियन छात्र ने शेयर करते हुए कहा था कि वह पढ़ने के लिए स्विटजरलैंड गया हुआ था। वहां उसकी लैंड लेडी अकसर घर से बाहर जाया करती थी लेकिन वह संपन्न भी थी तो वह हैरान था कि आखिर वह बावजूद इसके काम करती हैं। एक दिन वह महिला बाथरूम में गिर पड़ीं और उस छात्र ने उन्हें अस्पताल पहुंचाया। जब उसने कहा कि वह छुट्टी लेकर उस महिला की देखभाल कर लेगा तो महिला ने कहा कि उसे जरूरत नहीं है। उसके साथी अभी आएंगे और उसका ख्याल रखेंगे। उसने कहा कि जब वह जाती थी तब वह ऐसे ही अपना समय उन लोगों को देती थी जो जरूरत में थे। उसका वह पूरा समय अब उसके काम आएगा।
चंडीगढ़ से पड़ी बैंक की नींव
टाइम बैंक आफ इंडिया ट्रस्ट की शुरूआत जयपुर के सांगानेर से अनिल कुमार खोंसला ने की जो इसके मैनेजिंग ट्रस्टी हैं और प्रबोध चंद्र जैन फाउंडर चेयरमैन हैं। इन दोनों ने अपनी पेंशन से करीबन साढ़े तीन लाख रुपए खर्च कर इस टाइम बैंक की स्थानपा की है। प्रबोध जैन ने बताया कि उन्होंने टाइम बैंक के बारे में पढ़ना शुरू किया तो विदेश में उन्हें इसके होने का पता चला लेकिन भारत में इस तरह का कोई बैंक नहीं था। लिहाजा उन्होंने 27 दिसंबर 2018 में ट्रस्ट तो बना लिया। लेकिन उसके बाद 2019 में रजिस्ट्रेशन के लिए अप्लाई किया जो 25 अप्रैल 2019 को मिला। 29 अप्रैल 2019 को उन्होंने इसे चंडीगढ़ से लाँच किया। उसे लाँच तब चंडीगढ़ में पीएनबी के महाप्रबंधक डीके जैन ने किया।
कोरोना में दीं लोगों को सेवाएं
प्रबोध जैन ने बताया कि कोविड 19 के दौरान वह इतने सक्रिय नहीं थे। उनके बैंक की हैदराबाद से एक महिला ऑनलाइन सदस्य बनी। उनकी बहन का पति जो बिट्स पिलानी में कार्यरत थे, को कोविड हो गया। परिवार उन्हें किसी तरह जयपुर लाया लेकिन भाषा और खानपान को लेकर उन्हें समस्या आड़े आई। तब हैदराबाद वाली महिला सदस्य ने उनतक पहुंच बनाई और उनसे मदद की बात कही। इसके बाद संस्था के सदस्यों ने न सिर्फ परिवार के खानपान और अन्य जरूरतों का ख्याल रखा बल्कि महिला की अस्पताल के आईसीयू में भर्ती पति से बात करवाई। संस्था के सदस्य जब तक वह परिवार जयपुर रहा, तब तक दिन रात उनके लिए व्यवस्था जुटाते रहे। यह जो सेवा का काम है वह बादस्तूर जारी है। 6 जून 2021 को टाइम बैंक का नाम इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में दर्ज किया गया। इन दिनों यूपीईएस देहरादून के 46 छात्र 22 शहरों में गर्मियों की छुटि्टयों के दौरान संस्था के साथ इंटरशिप कर रहे हैं। छुटि्टयों के दौरान वह अपने-अपने शहरों से ही संस्था के साथ जुड़े हैं।
यह है संस्था का उद्देश्य
संस्था का उद्देश्य है अकेले और असहाय बुजुर्गों के सुख पूर्ण जीवन के लिए एक ऐसी सामाजिक संरचना का निर्माण करना जिसमें ऐसे लोगों को संस्था के सेवाभाव वाले सदस्यों द्वारा पारिवारिक सदस्य की भांति क्षमतानुसार समय देकर सेवाएं उपलब्ध कराई जाएं ताकि उन्हे भी जरूरत के समय उनके द्वारा अर्जित किए गए समय के समकक्ष सेवाएं प्राप्त हो सके।
ऐसे काम करती है संस्था
इसके तहत कोई भी 18 वर्ष या अधिक आयु का स्वस्थ व्यक्ति जिसके पास आवश्यकता पड़ने पर बुजुर्गों की देखरेख, सार संभाल करने का जज़्बा हो, जरूरतमंद बुजुर्गों को अपना समय देगा। उनके द्वारा दिये गए घंटो को उनके व्यक्तिगत टाईम बैंक खाते मे जमा किया जाएगा जिसे वे स्वयं के लिए भविष्य में उपयोग ले सकेंगे, जिसे ऐसे ही स्वयंसेवको द्वारा प्रदान किया जाएगा। संस्था का सदस्य प्रति सप्ताह चार घंटे की सेवा करे तो यह प्रतिमाह 16 घंटे और साल भर में 192 घंटे या 8 दिन जमा हो जाएंगे जिसे वह बीमारी या अन्य आवश्यकता के समय अपनी देखभाल प्राप्त कर सकता है। खास बात यह है कि इसमें किसी भी प्रकार का आर्थिक लेन-देन नहीं होगा। इसके अलावा पहले से समय जमा न भी तो भी टाइम बैंक से निशुल्क सेवाएं ली जाती हैं। आम शब्दों में टाइम बैंक आफ इंडिया में रजिस्ट्रेशन जीरो बैलेंस बैंक खाता खोलने जैसा ही है। जब भी और जितना भी आपके पास समय हो, जरूरतमन्द बुजुर्गों की सेवा कर अपने खाते में
जमा कराएं और भविष्य में खुद को जरूरत पड़ने पर किश्तों में या एकमुश्त उपयोग कर लें जोकि ऐसे ही सदस्यों द्वारा प्रदान की जायेगी ।
सबसे पहले अमेरिका में हुई थी इसकी पहल
अमेरिका, ब्रिटेन, जापान, न्यूजीलैंड, स्पेन और ग्रीस जैसे देश भी इस सिस्टम को अपना चुके हैं। इस कॉन्सेप्ट पर सबसे पहले चर्चा अमेरिकी प्रोफेसर एडगर चान ने 1980 में शुरू की थी। उस वक्त अमेरिका में रीगन की सरकार ने बड़े पैमाने पर सामाजिक कार्यक्रमों में कटौती कर दी थी। प्रो. चान ने इसे विकल्प के तौर पर पेश किया था।
स्विट्जरलैंड में स्वास्थ्य मंत्रालय ने एकांकी बुजुर्गों के लिए किया था शुरू
वहीं, स्विट्जरलैंड ने ‘टाइम बैंक’ योजना शुरू की थी। स्विट्जरलैंड के स्वास्थ्य मंत्रालय ने यह योजना खासतौर पर अकेले रह रहे बुजुर्गों को ध्यान में रखकर तैयार की है। इसके तहत देश के लोग अपनी इच्छा से जरूरतमंद बुजुर्गों की सेहत खराब होने पर ध्यान रख सकते हैं। या अकेलापन दूर करने के लिए बुजुर्गों के साथ वक्त बिता सकते हैं। यह वक्त इन वॉलंटियर्स के सामाजिक सुरक्षा खाते में ‘टाइम यूनिट’ के रूप में जमा हो जाता है। जब ये वॉलंटियर्स वृद्धावस्था में पहुंचेंगे और उन्हें भी किसी काम में मदद की जरूरत होगी तो टाइम बैंक उनके लिए वॉलंटियर की व्यवस्था करेगा।
विशेष : श्लोक साभार चर्पटपंजिकास्तोत्र - (जगतगुरु श्री शंकराचार्य)
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