एक श्लोक में वृदावस्था का सार : वृद्धावस्था को लेकर एक श्लोक: यावद् वित्त-उप-अर्जन-सक्त: तावत् निज-परिवार: रक्तः पश्चात् धावति जर्जर-देहे वार्ताम् पृच्छति क: अपि न गेहे| अथार्त- जब तक धन-संपत्ति अर्जित करने में समर्थ हो तब तक उसका परिवार उसमें अनुरक्ति रखता है। बाद में वह जर्जर हो चुके शरीर के साथ इधर-उधर भटकता है और घर में कोई उससे हालचाल भी नहीं पूछता।