पंजाब केंद्रीय विश्वविद्यालय (सीयू पंजाब) के भूगोल विभाग ने भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएसएसआर) एवं जापान सोसाइटी फॉर द प्रमोशन ऑफ साइंस (जेएसपीएस) द्वारा प्रायोजित "सामुदायिक पहुंच किसान संवाद कार्यक्रम" का सफल आयोजन किया। यह कार्यक्रम इंस्टीट्यूट फॉर ग्लोबल एनवायरनमेंटल स्ट्रेटजीज़ (आईजीईएस), जापान और सुरेश ज्ञान विहार विश्वविद्यालय, जयपुर के सहयोग से आयोजित किया गया।
आईसीएसएसआर-जेएसपीएस प्रायोजित इस कार्यक्रम में भारत और जापान के विशेषज्ञों ने बठिंडा जिले के किसानों के साथ संवाद किया और जल व ऊर्जा के कुशल उपयोग के लिए एकीकृत समाधान विकसित करने पर की चर्चा
खबर खास, बठिंडा :
पंजाब केंद्रीय विश्वविद्यालय (सीयू पंजाब) के भूगोल विभाग ने भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएसएसआर) एवं जापान सोसाइटी फॉर द प्रमोशन ऑफ साइंस (जेएसपीएस) द्वारा प्रायोजित "सामुदायिक पहुंच किसान संवाद कार्यक्रम" का सफल आयोजन किया। यह कार्यक्रम इंस्टीट्यूट फॉर ग्लोबल एनवायरनमेंटल स्ट्रेटजीज़ (आईजीईएस), जापान और सुरेश ज्ञान विहार विश्वविद्यालय, जयपुर के सहयोग से आयोजित किया गया। इस
इंडो-जापानी पहल का मुख्य उद्देश्य कृषि में जल और ऊर्जा के सतत प्रबंधन को बढ़ावा देना था। कार्यक्रम में भारत और जापान के विशेषज्ञों ने बठिंडा जिले के किसानों के साथ संवाद किया और जल व ऊर्जा के कुशल उपयोग के लिए एकीकृत समाधान विकसित करने पर चर्चा की।
अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कुलपति प्रो. राघवेन्द्र प्रसाद तिवारी ने जल संरक्षण एवं प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण हेतु रणनीति अपनाने पर जोर दिया। उन्होंने इस क्षेत्र के जल संसाधनों की दीर्घकालिक स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए सामुदायिक भागीदारी के महत्व पर बल दिया तथा सामाजिक-सांस्कृतिक संरचनाओं में संरक्षण पद्धतियों के समावेश और एकीकरण की आवश्यकता पर प्रकाश डाला।
इस कार्यक्रम में भारत और जापान के विशेषज्ञों ने कृषि में नवीनतम तकनीकों से संबंधित अपने विचार साझा किए। जापानी विशेषज्ञ डॉ. पंकज कुमार (वरिष्ठ नीति शोधकर्ता - अनुकूलन और जल क्षेत्र), आईजीईएस, जापान) ने सतत कृषि विकास सुनिश्चित करने हेतु पारंपरिक संरक्षण तकनीकों और आधुनिक प्रौद्योगिकियों के संयोजन पर आधारित दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता पर जोर दिया। डॉ. युकाको इनामुरा (अनुसंधान प्रबंधक - अनुकूलन और जल क्षेत्र,
आईजीईएस) ने जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के लिए जल पुनर्चक्रण और स्थानीय ऊर्जा समाधान जैसी रणनीतियों के महत्व को रेखांकित किया। डॉ. सुई कनाजावा (नीति शोधकर्ता, आईजीईएस) ने जापानी परिशुद्धि सिंचाई तकनीकों के बारे में बताया और पंजाब की कृषि में उनके संभावित अनुप्रयोगों पर चर्चा की। उन्होंने कहा कि ड्रिप सिंचाई, वर्षा जल संचयन और जल पुन: उपयोग जैसी विधियाँ कृषि उत्पादकता को बढ़ा सकती हैं और जल व ऊर्जा की अत्यधिक खपत को कम करने में सहायक हो सकती हैं।
भारतीय विशेषज्ञ डॉ. सूरज कुमार सिंह (प्रोफेसर एवं निदेशक, जलवायु परिवर्तन और जल अनुसंधान केंद्र, सुरेश ज्ञान विहार विश्वविद्यालय, जयपुर) ने अंतरविषयक सहयोग की आवश्यकता पर जोर दिया। इस अवसर पर प्रो. सुभप्रेम सिंह बराड़ और रेशम सिंह बराड़ ने पंजाब की कृषि की वर्तमान स्थिति और सतत नीतियों की आवश्यकता पर विचार व्यक्त किए। इस संवाद कार्यक्रम में स्थानीय किसानों ने भी सक्रिय भागीदारी की और जल संकट तथा बढ़ती ऊर्जा लागत से जुड़ी अपनी चुनौतियाँ और अनुभव साझा किए। उनकी सहभागिता ने क्षेत्रीय आवश्यकताओं को समझने और पंजाब में जापानी तकनीकों के आधार पर जल-ऊर्जा समाधानों को अपनाने की संभावनाओं का आकलन करने में योगदान दिया।
कार्यक्रम की शुरुआत में स्कूल ऑफ एनवायरनमेंटल एंड अर्थ साइंसेज की डीन प्रो. योगलक्ष्मी ने प्रतिभागियों का स्वागत किया। भूगोल विभाग की अध्यक्षा डॉ. श्रुति कांगा ने इंडो-जापानी ज्ञान-विनिमय के महत्व और जापान की उन्नत जल संरक्षण एवं ऊर्जा-कुशल तकनीकों पर प्रकाश डाला। कार्यक्रम के समापन पर डॉ. एल. टी. सासांग गुइते ने औपचारिक धन्यवाद ज्ञापन प्रस्तुत किया। इस कार्यक्रम में भूगोल, भूविज्ञान और पर्यावरण विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभागों सहित अन्य विभागों के शिक्षकोंऔर छात्रों ने भाग लिया।
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