कहा, प्रधानमंत्री द्वारा घोषित पैकेज महज़ औपचारिकता; पंजाब की कुर्बानियों को अनदेखा किया गया भारतीय मौसम विभाग और बीबीएमबी की नाकामियों से स्थिति और बिगड़ी कहा, राज्य सरकार ने समय रहते उठाए ज़रूरी कदम
कहा, प्रधानमंत्री द्वारा घोषित पैकेज महज़ औपचारिकता; पंजाब की कुर्बानियों को अनदेखा किया गया भारतीय मौसम विभाग और बीबीएमबी की नाकामियों से स्थिति और बिगड़ी कहा, राज्य सरकार ने समय रहते उठाए ज़रूरी कदम
खबर खास, चंडीगढ़ :
पंजाब के जल संसाधन मंत्री बरिंदर कुमार गोयल ने आज पंजाब विधानसभा के विशेष सत्र में प्रस्ताव पेश करते हुए राज्यभर में बाढ़ प्रभावित परिवारों, किसानों और बुनियादी ढांचे की बहाली के लिए केंद्र से 20,000 करोड़ रुपये के विशेष पैकेज की मांग की।
सदन में "पंजाब का पुनर्वास" प्रस्ताव पर विस्तारपूर्वक विवरण साझा करते हुए कैबिनेट मंत्री ने पंजाब के प्रति केंद्र सरकार के उदासीन रवैये की कड़ी आलोचना की और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा घोषित राहत पैकेज को खानापूर्ति वाला, वास्तविक सहायता की बजाय महज़ मामूली खर्चों की पूर्ति करने वाला और एक दिखावा मात्र करार दिया।
कैबिनेट मंत्री ने देशवासियों को याद दिलाया कि किस तरह पंजाब हमेशा देश की सेवा में डटा रहा है, भारत के अन्न भंडार के रूप में देश को भोजन उपलब्ध कराता रहा है और कैसे युद्धों के दौरान देश की सीमाओं की रक्षा करता रहा और राष्ट्रीय संकटों में बेमिसाल बलिदान देता रहा है। उन्होंने कहा कि यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है कि केंद्र ने उस समय पंजाब को नज़रअंदाज़ किया जब यह राज्य अपने इतिहास की सबसे बड़ी प्राकृतिक आपदाओं में से एक का सामना कर रहा है।
गोयल ने कहा कि इस साल आई बाढ़ ने 1988 से भी अधिक तबाही मचाई है, जिसकी चपेट में 2300 से अधिक गाँव आए, लगभग 20 लाख लोग सीधे तौर पर प्रभावित हुए, 5 लाख एकड़ से अधिक क्षेत्र में खड़ी फसलें तबाह हो गईं, 7 लाख लोगों को अपने घर छोड़ने पड़े, 3200 से अधिक स्कूल, 19 कॉलेज, 1400 अस्पताल/क्लीनिक, लगभग 8500 किलोमीटर सड़कें और 2500 पुल/पुलियाँ या तो क्षतिग्रस्त हुईं या बह गईं। उन्होंने कहा कि पंजाब सरकार के विभिन्न विभागों द्वारा किए गए सर्वेक्षणों में शुरुआती नुक़सान का अनुमान लगभग 13,900 करोड़ रुपये लगाया गया था। इसकी जानकारी होने के बावजूद केंद्र ने इस हकीकत से मुँह मोड़ते हुए खानापूर्ति के लिए महज़ 1600 करोड़ रुपये का ऐलान किया, जो विशेष अनुदान नहीं बल्कि सिर्फ़ रूटीन खर्चों के लिए थे। उन्होंने कहा कि इस राशि में से भी पंजाब को अभी तक कुछ नहीं मिला।
जल संसाधन मंत्री ने कहा कि यद्यपि पंजाब ने 20,000 करोड़ रुपये की राहत की मांग की थी लेकिन प्रधानमंत्री द्वारा किया गया ऐलान राज्य की ज़रूरतों को पूरा करना तो दूर, उसके आस-पास भी नहीं है। उन्होंने इस कदम को महज़ एक दिखावा बताते हुए स्थिति की गंभीरता को समझने में केंद्र की पूरी नाकामी करार दिया। श्री गोयल ने आगे कहा कि पंजाब के लोगों ने दिखावे की बजाय, केंद्र से किसी ठोस कार्रवाई की उम्मीद की थी।
उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि इस साल पानी का बहाव 1988 के 11 लाख क्यूसेक की तुलना में 14.11 लाख क्यूसेक तक पहुँच गया, जो 1988 से लगभग 20 प्रतिशत अधिक है। इसमें लगभग 10 लाख क्यूसेक पानी सिर्फ़ खड्डों, नालों और चो के रास्ते पंजाब में दाख़िल हुआ। उन्होंने कहा कि भारतीय मौसम विभाग (आई.एम.डी.) के ग़लत अनुमानों से स्थिति और बिगड़ गई। उन्होंने बताया कि 24 अगस्त को आई.एम.डी. ने 21 मिलीमीटर बारिश की भविष्यवाणी की थी लेकिन वास्तव में 163 मिलीमीटर बारिश दर्ज हुई। इसी तरह 25 अगस्त को 18 मिलीमीटर बारिश की भविष्यवाणी के उलट 147 मिलीमीटर बारिश हुई, जो 717 प्रतिशत अधिक थी। उन्होंने कहा कि 26 अगस्त को 13 मिलीमीटर बारिश की भविष्यवाणी के विपरीत 90.5 मिलीमीटर (596 प्रतिशत अधिक) बारिश दर्ज हुई। उन्होंने कहा कि ऐसी बड़ी ग़लतियाँ केंद्र की एजेंसी की घोर लापरवाही को उजागर करती हैं।
कैबिनेट मंत्री ने आपदा को और बढ़ाने के लिए भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड (बी.बी.एम.बी) को भी ज़िम्मेदार ठहराया। उन्होंने कहा कि अंतर-राज्यीय बैठकों को बुलाने के सख़्त प्रोटोकॉल के कारण पानी छोड़ने के फैसलों में देरी की गई। पंजाब ने भाखड़ा के 1660 फुट के स्तर को छूने पर पानी छोड़ने की अपील की थी लेकिन बोर्ड ने तब तक पानी छोड़ने से इंकार कर दिया जब तक पानी का स्तर 1665 फुट तक नहीं पहुँच गया, जिसके कारण लोगों की जान-माल को बड़ा ख़तरा पैदा हो गया।
डीसिल्टिंग के मुद्दे पर उन्होंने कहा कि जल विभाग से सलाह किए बिना ब्यास दरिया को 2017 में रामसर साइट घोषित करने के बाद गाद निकालने और खुदाई के बुनियादी कार्यों पर भी रोक लगा दी गई, जिससे भारी मात्रा में गाद जमा हो गई।
कैबिनेट मंत्री ने ज़ोर देकर कहा कि मुख्यमंत्री स. भगवंत सिंह मान के नेतृत्व में पंजाब सरकार ने तेज़ी और ज़िम्मेदारी से काम किया, जिसके तहत दरियाओं के बांधों को पहले ही मज़बूत करना, कटावों को समय पर भरना और युद्ध स्तर पर बाढ़ सुरक्षा कार्य करना शामिल है। उन्होंने कहा कि रावी, ब्यास और सतलुज के धुसी बांध मज़बूती से खड़े रहे, वहीं घग्गर नदी पर व्यापक चैनलाईज़ेशन प्रबंधों ने पाँच दशकों में पहली बार कटावों को रोका, जिससे अकेले घग्गर से होने वाले 400 करोड़ रुपये के संभावित नुकसान से बचाव हो सका। उन्होंने कहा कि खन्नौरी में लगातार नौ दिनों तक पानी 750.7 फुट पर रहा और फिर भी कोई कटाव नहीं हुआ, जो मान सरकार द्वारा किए गए कामों की गवाही देता है।
जल संसाधन मंत्री ने संकट की घड़ी में पंजाब के साथ खड़े होने वाली सभी धिरों का धन्यवाद किया, जिनमें विभिन्न राजनीतिक दलों के नेता, आप के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल, मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान, कैबिनेट मंत्री, विधायक, पार्टी कार्यकर्ता के अलावा प्रभावित लोगों तक पहुँचने वाले सामाजिक संगठन और संत-महापुरुष शामिल हैं।
उन्होंने कहा कि यह हैरानी की बात है कि जब पंजाब 25-26 अगस्त को बाढ़ से जूझ रहा था तब बाद में दौरे पर आए केंद्रीय मंत्रियों ने राज्य के ज़ख्मों पर मरहम लगाने की बजाय नमक छिड़कने का काम किया और कुछ ने तो इस आपदा को मानवीय साज़िश तक बता दिया। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री ने लगभग दो हफ़्तों की चुप्पी के बाद 9 सितंबर को पंजाब आकर 13,900 करोड़ रुपये के नुकसान के आकलन और 20,000 करोड़ रुपये की मांग को नज़रअंदाज़ किया, जबकि पंजाब दौरे के कुछ ही दिनों बाद प्रधानमंत्री ने एक छोटे राज्य को तोहफ़े के रूप में लगभग 7,000 करोड़ रुपये दे दिए। उन्होंने कहा कि कृषि, युद्धों और आतंकवाद में पंजाब के बेमिसाल बलिदानों के बावजूद राज्य को उसके जायज़ हक से वंचित कर दिया गया।
गोयल ने केंद्र से अपील की कि वह राजनीति से ऊपर उठकर पंजाब के प्रति सच्ची हमदर्दी दिखाए। उन्होंने कहा कि पंजाब की 20,000 करोड़ रुपये की मांग न सिर्फ़ जायज़ है, बल्कि लोगों की रोज़ी-रोटी और कृषि क्षेत्र को फिर से खड़ा करने के साथ-साथ सड़कों, स्कूलों और स्वास्थ्य संस्थानों के पुनर्निर्माण के लिए भी ज़रूरी है। उन्होंने कहा कि इससे कम कुछ भी देश के विकास में अहम योगदान देने वाले पंजाब के साथ विश्वासघात होगा।
सदन में "पंजाब के पुनर्वास" प्रस्ताव पर कैबिनेट मंत्री लालजीत सिंह भुल्लर, विधायक कुलदीप सिंह धालीवाल, अमनशेर सिंह शेरी कलसी, इंदरजीत कौर मान, डॉ. अमनदीप कौर अरोड़ा, नरिंदरपाल सिंह सवना, जगदीप कंबोज गोल्डी, दविंदरजीत सिंह लाडी ढोस और डॉ. चरणजीत सिंह ने भी अपने विचार साझा किये।
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