कहा, मुख्यमंत्री लोगों को गुमराह कर रहे हैं कि ज़मीनें सिर्फ़ उनकी सहमति से ली जाएँगी ‘लैंड पूलिंग नीति के कई प्रावधानों में बिना सहमति के भूमि अधिग्रहण का प्रावधान है’
कहा, मुख्यमंत्री लोगों को गुमराह कर रहे हैं कि ज़मीनें सिर्फ़ उनकी सहमति से ली जाएँगी ‘लैंड पूलिंग नीति के कई प्रावधानों में बिना सहमति के भूमि अधिग्रहण का प्रावधान है’
खबर खास, एसएएस, नगर (मोहाली):
वरिष्ठ कांग्रेस नेता और पंजाब के पूर्व स्वास्थ्य मंत्री बलबीर सिंह सिद्धू ने लैंड पूलिंग नीति के तहत भूमि अधिग्रहण संबंधी पंजाब के मुख्यमंत्री के बयान को पूरी तरह से भ्रामक बताया है और मुख्यमंत्री को किसी भी सार्वजनिक मंच पर इस मुद्दे पर उनसे बहस करने की चुनौती दी है।
सिद्धू ने कहा कि इस नीति में कहीं भी यह नहीं लिखा है कि किसानों की ज़मीनें सिर्फ़ उनकी सहमति से ही अधिग्रहित की जाएँगी, बल्कि यह कहा गया है कि परियोजनाओं के बीच आने वाली ज़मीनें भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 2013 के तहत अधिग्रहित की जाएँगी। उन्होंने कहा कि इसके अलावा, राज्य द्वारा बनाई गई मेगा परियोजनाओं की नीति में यह भी प्रावधान है कि किसी भी परियोजना के “क्रिटिकल गैप” को भरने के लिए सरकार परियोजना के कुल क्षेत्रफल का 10 प्रतिशत अधिग्रहण करने के लिए बाध्य है।
उन्होंने दावा किया कि इन धाराओं के तहत लोगों से जबरन ज़मीनें छीनी जाएंगी, जैसा कि गमाडा ने 9 जुलाई को न्यू चंडीगढ़ में ओमैक्स कंपनी के प्रोजेक्ट के लिए पैंतपुर, बांसेपुर, सैनी माजरा, रानीमाजरा, ढोडेमाजरा और भरोजियां गाँवों में 23 एकड़ ज़मीन अधिग्रहण करने के लिए एक अधिसूचना जारी की थी। कांग्रेस नेता ने कहा कि इस नीति में यह भी कहा गया है कि जो किसान अपनी ज़मीन नहीं देंगे, उन्हें सीएलयू नहीं दिया जाएगा। जिसका सीधा मतलब है कि किसान भविष्य में अपनी ज़मीन पर कोई कारोबार नहीं कर सकता और न ही किसी व्यापारी को बेच सकता है।
उन्होंने कहा कि नीति में यह भी कहा गया है कि अगर किसान प्रोजेक्ट पूरा होने के बाद ज़मीन देना चाहे, तो भी उसकी ज़मीन नहीं ली जाएगी। उन्होंने स्पष्ट किया कि ये धाराएँ सिर्फ़ किसान को ज़मीन देने के लिए मजबूर करने के लिए डाली गई हैं। सिद्धू ने नीति के पक्ष में बयान दे रहे पंजाब के मंत्रियों को चुनौती देते हुए कहा कि इस नीति में कहीं भी वसीयत शब्द नहीं लिखा है, बल्कि सहमति लिखी है, लेकिन इस शब्द का भी कोई मतलब नहीं रह जाता जब सरकार ने खसरा नंबरों की अधिसूचना जारी कर कहा है कि किसानों को अब अपनी सहमति देनी चाहिए। उन्होंने कहा कि सरकार ने पुरानी नीति में इस प्रावधान को हटा दिया है जिसके तहत ज़मीन मालिकों को ज़मीन के बदले प्लॉट लेने या भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 2013 के तहत बाज़ार मूल्य से चार गुना मुआवज़ा और विस्थापन भत्ता लेने की आज़ादी थी।
पूर्व मंत्री ने कहा कि इस नीति में भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 2013 का उल्लंघन करते हुए 'सामाजिक प्रभाव सर्वेक्षण' की पूरी तरह अनदेखी की गई है, जिसके तहत वहाँ के भूमिहीन लोगों, खेतिहर मज़दूरों, छोटे दुकानदारों, काश्तकारों और कारीगरों पर भूमि अधिग्रहण के पोषण संबंधी, शारीरिक, पर्यावरणीय, आर्थिक, सामाजिक, शैक्षिक और मानसिक प्रभावों का आकलन करना क़ानूनी तौर पर अनिवार्य है। उन्होंने कहा कि सरकार ने इस नीति में यह भी नहीं बताया है कि विस्थापित/बेघर और बेरोज़गार लोगों का पुनर्वास कैसे, कहाँ और कब किया जाएगा?
सिद्धू ने कहा कि इस नीति का एक किसान विरोधी पहलू यह है कि ज़मीन अधिग्रहण के बाद ज़मीन मालिक अदालतों में जाकर मुआवज़ा बढ़वा लेते थे, लेकिन अगर वे ज़मीन के लिए अपनी 'सहमति' दे देते हैं, तो वे किसी अदालत में नहीं जा पाएँगे।
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