सांसद राघव चड्ढा ने संसद में केंद्र सरकार को घेरा ; भाजपा के समर्थक भी इस बजट से नाराज, 10 साल में सरकार ने टैक्स लगा-लगा कर आम आदमी का खून चूस लिया है – राघव
खबर खास, चंडीगढ़ / नई दिल्ली :
‘इंग्लैंड जैसे टैक्स के बदले में सरकार सोमालिया जैसी सुविधाऐं देती है। ‘ ये कहना है आप के पंजाब से राज्यसभा सांसद राघव चड्ढा का। गुरुवार को संसद में अपने भाषण में उन्होंने केंद्र सरकार को घेरा और लोकसभा चुनाव में हार के कारण बताते हुए आर्थिक सुझाव दिए।
राघव चड्ढा ने कहा कि इस बजट ने देश के हर वर्ग को निराश किया है। भाजपा के समर्थक भी इस बजट से बेहद नाराज हैं क्योंकि पिछले 10 साल में सरकार ने टैक्स लगा लगा कर आम आदमी का खून चूस लिया है। चड्ढा ने कहा कि देश के आमलोग सोमालिया जैसी सेवा पाने के लिए इंग्लैंड की तरह टैक्स देते हैं। आज आम आदमी अगर 10 रुपए को कमाता है तो सरकार उसमें से दो-तीन रुपए इनकम टैक्स के रूप में, दो-ढाई रुपए जीएसटी और एक-डेड रुपए सरचार्ज लगा देती है। कुल मिलाकर 7-8 रूपए तो सरकार ही ले लेती है और इसके बदले सरकार लोगों को न तो वर्ल्ड क्लास एजुकेशन, हेल्थ और ट्रांसपोर्ट सुविधा देती है, फिर इतना टैक्स क्यों?
राघव चड्ढा ने लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की हार का का कारण बताया और कहा कि भाजपा के हार के तीन कारण है। पहला है इकोनॉमी, दूसरा इकोनॉमी और और भी इकोनॉमी। उन्होंने कहा कि देश की अर्थव्यवस्था बेहद खराब है, इसका प्रभाव ग्रामीण क्षेत्रों पर ज्यादा पड़ा है। इसलिए ग्रामीण इलाकों में भाजपा की सीटें कम हो गई क्योंकि भारत की 60 प्रतिशत से ज्यादा आबादी गांवों में बसती है।
उन्होंने कहा कि 2019 में भारतीय जनता पार्टी की 303 सीटें मिली थी। इस बार देश की जनता ने उस पर 18 प्रतिशत जीएसटी लगाकर इनको 240 सीटों पर ला दिया। आज ग्रामीण क्षेत्रों में महंगाई, बेरोजगारी, आर्थिक असमानता, किसानों पर कर्ज और कृषि में ज्यादा लागत और एमएसपी का नहीं होने के कारण आर्थिक हालत पिछले ढाई दशक में निचले स्तर पर है, जबकि वादा किसानों की आय दुगनी करने और स्वामीनाथन रिपोर्ट के अनुसार एमएसपी देने का था।
चड्ढा ने कहा कि पिछले 25 महीने में ग्रामीण मजदूरी कम हुई है। 2014 में एक दिहाड़ी मजदूर अपनी एक दिन की मजदूरी से 3 किलो अरहर की दाल खरीद सकता था आज वह सिर्फ डेढ़ किलो अरहर दाल खरीद पा रहा है। जिसका मतलब महंगाई बढ़ रही है और उसकी आमदनी भी कम हो रही है। इसलिए ग्रामीण इलाकों में भाजपा का 5% वोट शेयर कम हुआ।
दूसरा कारण जिससे इनकी चुनाव में दुर्दशा हुई वह है फूड इन्फ्लेशन। आज आटा, दूध, चावल, दही कुछ भी हो हर वस्तु की कीमतें बेहद बढ़ गई है। आज देश में फूड इन्फ्लेशन नौ प्रतिशत से अधिक बढ़ गया है। जिन चीजों का हम निर्यात करते हैं आज वह काफी महंगी हो गई है और उसका फायदा भी किसानों नहीं मिलता। फिर वह सारा पैसा जा कहां रहा है?
उन्होंने अर्थव्यवस्था को लेकर सरकार को कई सुझाव भी दिए। पहला सुझाव कि सरकार न्यूनतम मजदूरी से महंगाई को जोड़ने का प्रयास करे ताकि गरीब लोगों को महंगाई से राहत मिले। दूसरा सुझाव – किसानों को मिलने वाले फसलों की कीमतों की बेहतर ढंग से समीक्षा की जाए ताकि कृषि फायदेमंद हो सके और तीसरा – किसानों की आर्थिक भलाई के लिए स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के अनुसार एमएसपी की कानूनी गारंटी दी जाए।
चौथा सुझाव उन्होंने दिया कि लॉन्ग टर्म कैपिटल गैन टक्स को पहले की तरह ही रहने दिया जाए नहीं तो इसका बुरा प्रभाव रियल एस्टेट सेक्टर पर पड़ेगा। इसके कारण लोगों के लिए नया घर खरीदना मुश्किल हो जाएगा और बिल्डर को भी नुकसान उठाना पड़ेगा। इसके लिए चड्ढा ने एक उदाहरण भी दिया और समझाया कि किस तरह नयी टैक्स व्यवस्था नुकसानदायक है। उन्होंने बताया कि इसके कारण रियल एस्टेट सेक्टर में भारी तादाद में ब्लैक मनी आएगा और फर्जीवाड़ा होगा।
पांचवा सुझाव कि फाइनेंशियल सेविंग्स प्रोत्साहित किया जाए विशेष रूप से इक्विटी, म्युचुअल फंड, बैंक डिपॉजिट और फाइनेंशियल इन्वेस्टमेंट आदि जो लोग दो से तीन साल से अधिक के लिए करते हैं। छठा सुझाव कि जीएसटी का रिव्यू किया जाए। एमएसएमई सेक्टर से जुड़ी चीजों पर कम जीएसटी लगाया जाए और एफएमसीजी वस्तुओं से जीएसटी हटाया जाए।
सातवां कि राज्यों के साथ फंड के मामले में भेदभाव न किया जाए। जिस तरह इस बार बिहार और आंध्रप्रदेश को विशेष पैकेज दिया गया और दूसरे राज्यों को झुनझुना पकड़ा दिया गया, यह संघवाद के लिए सही नहीं है। केन्द्र सरकार को ‘डिस्क्रिमिनेटरी फेडरलिज्म’ नहीं, ‘को-ऑपरेटिव फेडरलिज्म’ की तरह काम करना चाहिए।
आठवां – सरकार को सेस और सरचार्ज कम किया जाए या इसे राज्यों को भी दिया जाए। अभी केंद्र सरकार को सेस और सरचार्ज वाले पैसे राज्यों के साथ बांटना नहीं पड़ता इसलिए सरकार इस माध्यम से ज्यादा से ज्यादा आम आदमी से पैसा वसूलती है। अगर केंद्र सरकार 100 रुपए कमाती है तो उसमें से 18 रुपए सेस और सरचार्ज के जरिए कमाती है। मतलब 18 प्रतिशत टैक्स सीधा केंद्र सरकार की जेब में जाता है। आखिरी सुझाव कि राज्यों को मिलने वाले जीएसटी अनुदान जो अब बंद कर दिया गया है, उसे कम से कम पांच साल और बढ़ाया जाए।