शिमला में मंदिर की दीवार पर बनी साईं मूर्ति के चलते जाखू मंदिर में की गौ ध्वज स्थापना
खबर खास, शिमला :
गौमाता को राष्ट्रमाता घोषित करने को लेकर पूरे देश भर की यात्रा कर रहे हिन्दू ज्योतिष्पीठाधीश्वर शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानन्दः सरस्वती ‘1008′ जगद्गुरु शंकराचार्य शिमला पहुंचे। लेकिन शिमला मंदिर की दीवार पर साईं मूति बनी होने के कारण वह कार्यक्रम स्थल पर नही गए। उन्होंने शिमला के जाखू मंदिर में ही गौ ध्वज स्थापना।
इस मौके पर जगद्गुरु शंकराचार्य ने अपने संबोधन में कहा कि सरकार गौमाता को राष्ट्रमाता घोषित करे और हिंदू समाज गोरक्षकों को ही अपना वोट दे। उन्होंने कहा कि जिस दिन गो हत्या रूकेगी, उसी दिन हमारा सारा कर्ज उतरना शुरू हो जाएगा।
इससे पहले राजधानी पहुंचे जगद्गुरु शंकराचार्य का वहां पर पादुका पूजन हुआ। जिसके बाद शंकराचार्य जी ने गौ ध्वज स्थापना की। इस मौके पर वहां पहुचे श्रद्धालुओं को अपने प्रवचन के दौरान उन्होंने कहा कि गौमाता को राष्ट्रमाता घोषित कराने के लिए पिछले महीने 22 सितंबर से उन्होंने अयोध्या धाम में रामकोट की परिक्रमा कर इस यात्रा की शुरूआत की थी। तब से यह यात्रा पूर्वोत्तर के सभी राज्यों में जाकर गोप्रतिष्ठा ध्वज स्थापित कर चुकी है। उन्होंने कहा कि यात्रा को एक बड़ी सफलता तब मिली जब उनके निर्देश पर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने देसी गाय को राज्यमाता घोषित किया और केबिनेट प्रस्ताव की कापी उन्हें सौंपी। शंकराचार्य ने कहा कि उनका उद्देश्य इस यात्रा के माध्यम से देश के उपर से संपूण गौहत्या का कलंक मिटाकर गौमाता को राष्ट्रमाता घोषित कराने का है।
उन्होंने कहा कि गो गंगा कृपाकांक्षी गोपालमणि जी का ये आन्दोलन अत्यन्त पवित्र है। गाय को दूध और मांस समझने वाले दोनों ही गाय के महत्व से अनजान है। उन्होंने कहा कि भगवद्गीता में भगवान कहते हैं कि हमारे साथ भगवान ने यज्ञ को प्रकट किया और हम परस्पर एक दूसरे के लिए बनाए गए हैं। इसलिए इस आन्दोलन को बल देने के लिए हम इस अभियान में लगे हुए हैं।
‘ब्राह्मण और गौमाता ही करवाते हैं यज्ञ संपन्न’
शंकराचार्य ने इस संदर्भ को अच्छे से समझाते हुए कहा कि कहा कि एक बार प्रजापति ब्रह्मा जी ने देवता, दैत्य और मानव को आमंत्रित किया। उन्हें सुंदर व्यंजन परोसे गए लेकिन ब्रह्मलोक के सेवकों ने सबके हाथ में एक लंबा डंडा रस्सी के साथ बांध दिया। दैत्यों ने तो भोजन का बहिष्कार किया और वहां से चले गए लेकिन देवता और मानव ने आपसी सहयोग कर एक-दूसरे को खिलाकर परम तृप्ति का अनुभव किया। उन्होंने कहा कि जब हम अपने देवता, अतिथि और बच्चों के लिए भोजन बनाते हैं तो इसे यज्ञ कहा जाता है। मंत्र और हवि के द्वारा यंत्र होता है जिससे देवता भी प्रसन्न होते हैं। ब्राहमण और गौमाता ही यज्ञ संपन्न कराते हैं और बिना गाय के सारी पूजा, उपासना व्यर्थ है। उन्होंने कहा कि 33 कोटि देवता की सेवा ही गौसेवा है और इसलिए हम अपने घर पर बनने वाली पहली रोटी 33 कोटि देव स्वरूपा गौमाता को समर्पित करते हैं।‘गवां मध्ये वसाम्यह्म’ मैं सदा गायों के बीच में ही रहता हूं
शंकराचार्य ने कहा कि यदि ईश्वर को पाना है तो गौसेवा करनी चाहिए क्योंकि भगवान ने कहा है कि ‘गवां मध्ये वसाम्यह्म’ मैं सदा गायों के बीच में ही रहता हूं। उन्होंने कहा कि ‘मातीति माता’ जो सबको अपने अंदर समा ले वही माता है और गौमाता में सबकुछ समाहित है। उन्होंने कहा कि ललितासहस्रनाम में भगवती को ‘गौमाता’ कहकर सम्बोधित किया गया है क्योंकि गौमाता सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाली देवी है। उन्होंने कहा कि हम सनातनी केवल दूध नहीं अपितु आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए गौसेवा करते हैं।